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    Home»Uncategorized»चला अखरा में पारंपरिक वाद्य यंत्र, झारक्राफ्ट में आर्गेनिक सिल्क लुभा रहा लोगों को
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    चला अखरा में पारंपरिक वाद्य यंत्र, झारक्राफ्ट में आर्गेनिक सिल्क लुभा रहा लोगों को

    Team JoharBy Team JoharAugust 9, 2024No Comments3 Mins Read
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    रांची: बिरसा मुंडा स्मृति मार्क में चल रहे आदिवासी महोत्सव में कई राज्यों के आदिवासी स्टॉल शामिल हैं, जो प्रदर्शनी हॉल में लगाए गए हैं. इनमें से एक स्टॉल चला अखरा विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र है. जहां संथाल ट्राइब का पारंपरिक वाद्ययंत्र “बानाम” प्रदर्शित किया जा रहा है. इस स्टॉल पर मांदर और नगाड़ा भी उपलब्ध हैं. वहीं शांतिनिकेतन से आईं मादी लिंडा ने अपने कला प्रदर्शन से झारखंड की अनोखी परंपरा “जनी शिकार” की झलक दिखाई, जो महिलाओं द्वारा किया जाने वाला शिकार है और हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है. यह कला उरांव जनजाति की गौरवशाली परंपरा और नारी सशक्तिकरण का प्रतीक है. महिलाएं इस चित्रकला को पसंद कर रही हैं और इसके बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुक हैं.

    झारक्राफ्ट ने लगाया लाइव स्टॉल

    प्रदर्शनी हॉल में लगे झारक्राफ्ट स्टाल के ऑर्गेनिक सिल्क का आकर्षण लोगों को खूब भा रहा है. झारक्राफ्ट दुनिया में ऑर्गेनिक सिल्क उत्पादों का प्रमुख नाम है जो कि अपने उत्पादों को बनाने से लेकर रंगों तक किसी भी तरह के रसायन का उपयोग नहीं करता है, जिसमें कुकून से धागा और धागे से कपड़े तक की पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक मानकों के साथ ही की जाती है. इस प्रदर्शनी में झारक्राफ्ट द्वारा लाइव हस्तकरघा एवं रीलिंग मशीन चलाकर कुकून से धागा और धागे से कपड़े बनाने की प्रक्रिया दिखाई जा रही है. झारक्राफ्ट के इस स्टॉल में हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट ड्रेस, चादर, सिल्क एवं कॉटन साड़ी, लाल पाढ़ साड़ी, शॉल, डोकरा से बने पारंपरिक आभूषण, हसुली, पइला, सोहराय पेंटिंग, जादू पटिया पेंटिंग समेत विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बिक्री हेतु उपलब्ध है.

    सोहराय दे रहा प्रकृति से जुड़ने का संदेश

    झारखंडी संस्कृति में सोहराई कला का महत्त्व सदियों से रहा है. प्रकृति से मनुष्य को जोड़े रखने के लिए सोहराई कला का महत्व बढ़ जाता है. इस महत्व को झारखण्ड आदिवासी महोत्सव में दिखाया जा रहा है. हजारीबाग से आए कलाकार अल्का इमाम, बेलनगिनी रोबर्ट मरियम, उषा पन्ना एवं प्रमिला किरण लकड़ा द्वारा अपनी कला के प्रदर्शन से लोगों को प्रकृति से जुड़े रहने का संदेश दिया जा रहा है. प्रकृति रहेगी तो जीवन रहेगा. राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सोहराई पर्व के दौरान देसज दुधी माटी से सजे घरों की दीवारों पर महिलाओं के हाथों का हुनर देखने को मिलता है.

    परंपरिक लोक चित्रकला देखने को मिली

    संथाल परगना की परंपरिक लोक चित्रकला जादो पटिया देखने को मिल रही है. संथाल परगना से आए कलाकार अपने कला का प्रदर्शन कर रहें हैं. आदिवासी चित्रकला कार्यशाला सह प्रदर्शनी में संताल परगना की जादो पटिया पेंटिंग के आठ कलाकार भाग ले रहे हैं. इनमें नेशनल फेलोशिप अवॉर्डी नीलम नीरद, अर्पिता राज नीरद, निताई चित्रकार, गणपति चित्रकार, दशरथ चित्रकार, दयानंद चित्रकार, जियाराम चित्रकार आदि शामिल हैं. कार्यशाला के कलाकारों को जादोपटिया पेंटिंग के खोजकर्ता डॉ आरके नीरद द्वारा जादोपटिया और पटकर पेंटिंग के विषय में तकनीकी जानकारी दी जा रही है.

    समृद्ध आदिवासी जीवन दर्शन की झलक

    विभिन्न राज्यों एवं जिलों से आए कलादल अपनी कला का प्रदर्शन कर रहें हैं. यहां जादो पटिया, सोहराई, कोहबर, पटकर,उरांव एवं समकालीन चित्रकला शैली के करीब 55 कलाकर भाग ले रहें है. इनमें दुमका, जामताड़ा, रांची, हजारीबाग, लोहरदगा, गुमला, शांतिनिकेतन,बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय सहित छत्तीसगढ़ के वरिष्ट कलाकार भाग ले रहें है ये कार्यशाला 5 अगस्त से आरंभ हुआ है जो 10 अगस्त तक चलेगा.

     

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