Ranchi : झारखंड हाईकोर्ट ने वर्ष 2013 में दुमका के पास हुए नक्सली हमले के मामले में फांसी की सजा पाए दो नक्सलियों की अपील और राज्य सरकार की याचिका पर अलग-अलग फैसला सुनाया है। एक ओर जहां न्यायाधीश संजय प्रसाद ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई फांसी की सजा सुनाई, वहीं, न्यायाधीश रंगोन मुखोपाध्याय ने दोनों आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। इस मामले में दुमका सत्र न्यायालय ने सुखलाल उर्फ प्रवीर मुर्मू और सनातन बख्शी उर्फ सहदेव राय को नक्सली हमले में दोषी पाते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। राज्य सरकार ने इस फैसले को हाईकोर्ट में मंजूरी (डेथ रेफरेंस) के लिए भेजा था, वहीं दोनों दोषियों ने फैसले के खिलाफ अपील की थी।
न्यायमूर्ति संजय प्रसाद का फैसला
न्यायमूर्ति संजय प्रसाद ने निचली अदालत के फैसले को सही माना और कहा कि दोनों नक्सलियों पर लगाए गए आरोप साबित हुए हैं। उन्होंने न केवल फांसी की सजा को कायम रखा, बल्कि नक्सली हमले में मारे गए तत्कालीन पाकुड़ एसपी अमरजीत बलिहार के परिवार को 2 करोड़ रुपये मुआवजा और डीएसपी या डिप्टी कलेक्टर की नौकरी देने का आदेश दिया। इसके अलावा, हमले में शहीद हुए अन्य पांच पुलिसकर्मियों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये मुआवजा और शैक्षणिक योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरी देने का आदेश दिया गया है। यह आदेश मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी, कार्मिक सचिव और जेपीएससी अध्यक्ष को भेजा गया है ताकि इसका पालन हो सके।
न्यायमूर्ति रंगोन मुखोपाध्याय का फैसला
वहीं, न्यायमूर्ति रंगोन मुखोपाध्याय ने साक्ष्यों में विसंगति और गवाहों के विरोधाभासी बयान को आधार मानते हुए दोनों नक्सलियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट में दर्ज 31 गवाहों में प्रमुख गवाह एसपी के ड्राइवर धर्मराज मारिया और बॉडीगार्ड लेबेनियस मरांडी के बयानों में विरोधाभास है।
मुख्य बिंदु जिनके आधार पर बरी किया गया
- बॉडीगार्ड ने पहली बार कोर्ट में आरोपी की पहचान की थी।
- उसने कहा कि उसने आरोपी को पहले कभी नहीं देखा था।
- उसने खुद को गड्ढे में छिपा लिया था और घटना को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाया।
- ड्राइवर भी घायल था और पहली बार कोर्ट में पहचान की।
- ड्राइवर ने एक आरोपी को पहचान नहीं पाया।
- थाना प्रभारी और ड्राइवर के बयानों में घटना स्थल को लेकर विरोधाभास पाया गया।
इन सभी बिंदुओं पर गौर करते हुए न्यायालय ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं है, और इसलिए उन्हें बरी किया जाता है।
क्या है मामला?
2 जुलाई 2013 को पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार और उनकी टीम दुमका लौट रही थी। इसी दौरान नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया, जिसमें एसपी समेत छह पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। जांच के बाद पुलिस ने चार आरोप पत्र दाखिल किए और सुखलाल और सनातन को गिरफ्तार किया गया। यह मामला अब हाईकोर्ट में अलग-अलग राय के चलते बड़ी बेंच (लार्जर बेंच) को भेजा जा सकता है, जहां अंतिम निर्णय होगा।
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