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    Home»धर्म/ज्योतिष»देवउत्थान एकादशी के बाद बजेगी शहनाई, 4 नवंबर को मनाया जायेगा पर्व
    धर्म/ज्योतिष

    देवउत्थान एकादशी के बाद बजेगी शहनाई, 4 नवंबर को मनाया जायेगा पर्व

    Team JoharBy Team JoharNovember 3, 2022No Comments4 Mins Read
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    रांची: एकादसी 3 नवंबर को रात्रि 08:40 से 4 को रात्री 06:50 तक है। इसलिए 4 को मानेगा। इसी दिन तुलसी विवाह भी होगा। कही कही तुलसी विवाह 5 नवंबर को मनाया जाएगा। आज तुलसी से शालिग्राम का विवाह करवाने से कन्या दान का फल मिलता है। इस बार देवोत्थान एकादशी 4 नवंबर शुक्रवार को है।

    आज से सारे शुभ कार्य सम्पन होंगे।

    आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देव शयन के बाद भगवान विष्णु चार महीने के बाद कार्तिक माह की एकादशी तिथि को देवप्रबोदिनी (देवउठनी ) एकादशी के दिन योगनिंद्रा से जागते है। इस दिन दिन व्रत करने से पूरे साल एकादशी व्रत करने का पुण्य मिलता है। भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि बजाकर निम्न श्लोक से जगाया जाता हैं –

    उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते। त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥

    उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।

    हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमंगलंकुरु।।।

                     भगवान  श्रीविष्णु को 

    जगाने के बाद षोडशोपचार विधि से पूजा कर अनेक प्रकार के फलों के साथ नैवेद्य का भोग लगाए। इस एकादशी में रातभर जागकर श्री हरि नाम-संकीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है। इस पुण्यप्रदा एकादशी के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रती मरणोपरान्त बैकुण्ठ जाता है।

    माता तुलसी और शालिग्राम विवाह : सनातन धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। इस दिन माता तुलसी और भगवान विष्णु के शालीग्राम अवतार के विवाह का विधान है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा के बाद जाग्रत होते हैं। एकादशी के दिन माता तुलसी का विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इसलिए अगर किसी ने कन्या दान न किया हो तो उसे जीवन में एक बार तुलसी विवाह कर के कन्या दान का शुभ पुण्य प्राप्त करना चाहिए। प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि धर्मानुसार तुलसी विवाह विधि-विधान से संपन्न कराने से भक्तों को अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा से मनोकामना पूरी होती है। वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

    माता तुलसी (वृंदा) और शालिग्राम (श्री हरि) की विवाह की पौराणिक कथा : – माता तुसली का असली नाम वृंदा था। उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ वह श्रीहरि विष्णु की परम भक्त थीं। वृंदा जब बड़ी हुईं तो उनका विवाह जलंधर नामक असुर से करा दिया गया। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त के साथ- साथ वह पतिव्रता स्त्री भी थीं। उनकी भक्ति और पूजा के कारण उनका पति जलंधर अजेय होता गया और इसके चलते उसे अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया और उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव कन्याओं को अपने अधिकार में ले लिया। इससे क्रोधित होकर सभी देव भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना की। परंतु जलंधर का अंत करने के लिए सबसे पहले उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग करना अनिवार्य था तभी भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया और इसके परिणामस्वरूप जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया। लेकिन जब वृंदा को श्रीहरि के छल का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु से कहा, हे नाथ मैंने आजीवन आपकी आराधना की आपने मेरे साथ ऐसा कृत्य कैसे किया? इस प्रश्न का कोई उत्तर श्रीहरि नहीं दे पाए और तब वृंदा ने भगवान विष्णु से कहा कि आपने मेरे साथ एक पाषाण की तरह व्यवहार किया मैं आपको शाप देती हूँ कि आप पाषाण बन जाएं।

    यह कहते ही भगवान श्री हरि पत्थर समान हो गए और सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब देवताओं ने वृंदा से याचना की कि वे अपना श्राप वापस ले लें। भगवान विष्णु भी वृंदा के साथ हुए छल से लज्जित थे और अंत में उन्होंने भगवान विष्णु को क्षमा कर दिया और भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर जलंधर के साथ सती हो गईं। वृंदा की राख से एक पौधा निकला जिसे श्रीहरि विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया कि तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करूँगा। मेरे शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा और कालांतर में जो लोग इस तिथि को तुलसी विवाह करेंगे उन्हें माता तुलसी और भगवान विष्णु के आशीर्वाद के साथ साथ सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होगी। एकादशी के दिन भक्त श्रद्धा के साथ जो कुछ भी जप-तप, स्नान-दान, होम करते हैं, वह सब अक्षय फलदायक हो जाता है। देवोत्थान एकादशी के बाद से विवाह और मांगलिक कार्य का शुभारम्भ होता है । सभी मांगलिक कार्यो में भगवान विष्णु को साक्षी मानकर किया जाता है।

    प्रसिद्ध ज्योतिष
    आचार्य प्रणव मिश्रा
    आचार्यकुलम, अरगोड़ा राँची
    8210075897

    Religion News
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