New Delhi : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर ने अपने कृत्य पर पछतावा नहीं जताया है। उन्होंने कहा कि वह मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी से आहत हुए थे और यह कदम उन्होंने सोच-समझकर उठाया।
राकेश किशोर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि वह खजुराहो के जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति की बहाली की मांग वाली याचिका को खारिज किए जाने से दुखी थे। उन्होंने आरोप लगाया कि सुनवाई के दौरान CJI ने कथित रूप से टिप्पणी की थी – “जाओ, मूर्ति से प्रार्थना करो कि उसका सिर वापस आ जाए”, जो उन्हें अपमानजनक लगी।
वकील राकेश ने यह भी कहा कि जब दूसरे धर्मों से जुड़े मुद्दे अदालत में आते हैं तो सुप्रीम कोर्ट गंभीरता दिखाता है, लेकिन सनातन धर्म से जुड़े मामलों में ऐसा नहीं होता। उन्होंने हल्द्वानी, जल्लीकट्टू, दही हांडी जैसे मुद्दों का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट की नीतियों पर सवाल उठाए।

#WATCH | Delhi: Suspended Advocate Rakesh Kishore, who attempted to hurl an object at CJI BR Gavai, says, “…I was hurt…I was not inebriated, this was my reaction to his action…I am not fearful. I don’t regret what happened.”
“A PIL was filed in the Court of CJI on 16th… pic.twitter.com/6h4S47NxMd
— ANI (@ANI) October 7, 2025
उन्होंने कहा, “अगर आप राहत नहीं देना चाहते, तो कम से कम उसका मजाक तो मत उड़ाइए। मैं हिंसा के खिलाफ हूं, लेकिन यह प्रतिक्रिया मेरी भावनाओं से जुड़ी थी। मुझे कोई डर नहीं है, और कोई पछतावा भी नहीं।”
बार काउंसिल द्वारा निलंबन के फैसले की भी उन्होंने आलोचना की। राकेश का कहना है कि उन्हें अनुशासन समिति से नोटिस मिलना चाहिए था, लेकिन नियमों को तोड़कर उन्हें सीधे सस्पेंड कर दिया गया।
दलित जज पर हमले के आरोपों पर उन्होंने कहा कि जस्टिस गवई अब बौद्ध धर्म अपना चुके हैं, इसलिए उन्हें “दलित” कहना राजनीति है। राकेश किशोर ने साफ कहा कि वह जेल जाने को तैयार हैं लेकिन माफी नहीं मांगेंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें एक दैवीय संदेश मिला, जिसने उन्हें यह कदम उठाने को प्रेरित किया। “भगवान ने मुझसे यह काम करवाया। अगर सरकार चाहे तो मुझे जेल भेज दे या फांसी पर चढ़ा दे।”
इस घटना की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कड़ी निंदा की है। उन्होंने ट्वीट कर कहा “सुप्रीम कोर्ट परिसर में मुख्य न्यायाधीश पर हुआ हमला निंदनीय है। यह हमारे समाज की गरिमा के खिलाफ है। जस्टिस गवई ने जिस संयम और शांति से स्थिति को संभाला, वह प्रशंसनीय है।”