New Delhi : अब घरों, होटलों और रेस्टोरेंट्स में इस्तेमाल होने वाला खाना पकाने का तेल फेंका नहीं जाएगा, बल्कि उससे हवाई जहाज का ईंधन बनाया जाएगा। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) की पानीपत रिफाइनरी को इस्तेमाल किए गए खाद्य तेल से “सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल” (SAF) बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (ICAO) से ISCC CORSIA सर्टिफिकेशन मिला है। इस सर्टिफिकेशन को पाने वाली IOC देश की पहली कंपनी बन गई है।
क्या है SAF?
सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) एक वैकल्पिक जैविक ईंधन है जो पारंपरिक जेट फ्यूल की तुलना में कम कार्बन उत्सर्जन करता है। इसे पुराने खाने के तेल, वनस्पति तेल और कृषि अवशेषों जैसे स्रोतों से तैयार किया जाता है। इसे 50% तक एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) में मिलाया जा सकता है। सरकार ने 2027 से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में बेचे जाने वाले जेट फ्यूल में 1% SAF मिलाना अनिवार्य कर दिया है।
2025 से शुरू होगा SAF का उत्पादन
IOC के चेयरमैन अरविंदर सिंह साहनी ने बताया कि पानीपत रिफाइनरी में 2025 के अंत तक हर साल 35,000 टन SAF का उत्पादन शुरू किया जाएगा। यह मात्रा सरकार के 1% SAF ब्लेंडिंग लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी।
होटल और मिठाई कंपनियों से जुटेगा पुराना तेल
SAF बनाने के लिए पुराना खाना पकाने का तेल बड़े होटलों, रेस्टोरेंट्स और हल्दीराम जैसी मिठाई कंपनियों से इकट्ठा किया जाएगा। फिलहाल इस तेल को एजेंसियां विदेश भेजती हैं, लेकिन अब यह भारत में ही ईंधन बनाने में इस्तेमाल होगा।
घरेलू तेल एकत्र करना चुनौती
हालांकि व्यावसायिक जगहों से तेल इकट्ठा करना आसान है, लेकिन घरों से तेल इकट्ठा करना अब भी बड़ी चुनौती है। इंडियन ऑयल का कहना है कि इस दिशा में काम किया जा रहा है, ताकि छोटे स्तर पर भी इस तेल को संग्रहित किया जा सके।
स्वच्छ ऊर्जा की ओर भारत का कदम
SAF के उत्पादन से भारत को कार्बन उत्सर्जन कम करने, कचरा प्रबंधन सुधारने और हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। आने वाले वर्षों में भारत इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है।
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