Ranchi : आज झारखंड की हवा शांत है। जंगल सिसक रहा है, नदियां-पहाड़ मौन हैं और हमारी आत्मा रो रही है, झारखंड निर्माता दिशोम गुरु अब हमारे बीच नहीं रहे। हमारे बीच से सिर्फ एक नेता नहीं गए हैं, बल्कि एक युग पुरुष, दिशोम गुरु, मार्गदर्शक, झारखंड की आत्मा शिबू सोरेन हम सभी को छोड़कर प्रकृति की गोद में समा गए हैं। ये सिर्फ शोक नहीं, एक युग का अंत है।
दिशोम गुरु कोई नाम नहीं था, वो हमारे आंदोलन की रगों में बहता हुआ एक विश्वास था। वो हमारे लिए पहाड़ की तरह अडिग और नदी की तरह सहज थे। एक ऐसा नेतृत्व, जो न कभी झुका, न कभी थका। उन्होंने हमें सिर्फ राजनीति करना नहीं सिखाया बल्कि उन्होंने हमें अपने लोगों से प्यार करना, उनकी तकलीफ़ को महसूस करना, और उनके हक-अधिकारों के लिए पूरे हौसले से लड़ना सिखाया। हममें से कई लोगों के लिए वे पिता स्वरूप थे। हमारे सपनों में उनका खून-पसीना लगा था। उन्होंने हमसे कहा था- झारखंड केवल एक भूगोल नहीं, यह हमारी पहचान है। इसे बचाना, सँवारना और मजबूत करना ही हमारा कर्म है।
उन्होंने हमें हाथ पकड़कर चलना सिखाया। जब हम पहली बार गांव-गांव में संगठन बनाने निकले थे। जब डर था, संसाधन नहीं थे, तब उनका विश्वास हमारे साथ था। उन्होंने हमें कहा था – हमारे लोगों को कभी मत छोड़ना। उनकी आवाज बनो। सत्ता आएगी-जाएगी, लेकिन अपनी मिट्टी और अपने लोग नहीं बदलने चाहिए। और यही उन्होंने खुद भी करके दिखाया।
उनका जीवन एक संघर्ष था – पहले जमींदारों से, फिर व्यवस्था से, फिर इस देश की राजनीतिक सोच से – जो आदिवासियों, शोषितों और वंचितों को हाशिये पर रखती थी। लेकिन उन्होंने हर मोर्चे पर डटकर लड़ाई लड़ी। संघर्ष करते हुए जेल गए, जान को खतरा हुआ, लेकिन डिगे नहीं। और आखिरकार उन्होंने झारखंड का सपना साकार किया और एक उन्नत झारखंड की नींव रखी।
आज की पीढ़ियां उनके संघर्षों की गाथाएँ सुनकर बड़ी हुई हैं। और अब, जब वे हमारे बीच नहीं हैं, हमें उनके अधूरे सपनों को पूरा करना है – एक समतामूलक, स्वाभिमानी, स्वशासी और उन्नत झारखंड का। दिशोम गुरु ने झारखंड को दिशा दी, नाम दिया, पहचान दी। हम सबको परिवार की तरह पाला। आज आपके जाने से हमारा हृदय निर्जीव हो गया है, लेकिन आपकी प्रेरणा में ही हमारा संकल्प है।
आपका जीवन दीपक की तरह था – खुद जलते रहे, लेकिन सबको रोशनी देते रहे।
आपकी कमी कोई नहीं भर सकता, लेकिन आपके मार्ग पर चलना ही अब हमारा कर्तव्य है।
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