चाईबासा : झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अल्पसंख्यक मोर्चा के विस्तार के बाद आदिवासी समुदाय और ईसाई धर्म के बीच पहचान को लेकर विवाद गहरा गया है। पश्चिमी सिंहभूम के आदिवासी संगठन, अखिल भारतीय आदिवासी अनुसूचित जाति जनजाति परिसंघ के सचिव बिर सिंह बिरुली ने मंगलवार को आरोप लगाया कि झामुमो ने दोहरी नीति अपनाते हुए ऐसे नेताओं को पार्टी में स्थान दिया है, जो पहले आदिवासी (हो समुदाय) और सरना धर्म के अनुयायी थे, लेकिन अब ईसाई धर्म अपना चुके हैं।
बिरुली ने विशेष रूप से रघुनाथ तियु और निर्दोष बोदरा का नाम लिया, जिन्हें अल्पसंख्यक मोर्चा में सचिव और कोषाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उनका कहना है कि धर्मांतरित व्यक्तियों को अल्पसंख्यक मानकर समिति में स्थान दिया जा रहा है, जबकि चाईबासा विधायक निरल पुरती, जो ईसाई धर्म अपना चुके हैं, को अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का लाभ मिल रहा है। बिरुली ने इसे आदिवासी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन करार देते हुए विधायक से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की मांग की है।
उन्होंने यह भी कहा कि संविधान और सामाजिक न्याय की भावना के अनुसार, एक व्यक्ति एक ही पहचान से लाभ नहीं उठा सकता। यदि कोई ईसाई धर्म अपनाता है, तो उसे अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का लाभ लेना अनैतिक और अवैधानिक है।
यह विवाद झामुमो की ओर से 7 जून को लिखे गए पत्र के बाद सामने आया, जिसमें अल्पसंख्यक मोर्चा समिति का गठन किया गया था। इस पत्र ने आदिवासी संगठनों में असंतोष की लहर पैदा कर दी है।
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