Johar Live Desk : हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर हम उन लोगों की कहानी लेकर आए हैं, जो अपने व्यस्त पेशेवर जीवन के बावजूद हिंदी साहित्य, कविता और लेखन के प्रति गहरा लगाव रखते हैं। ये लोग दिन में डॉक्टर, वकील, इंजीनियर या व्यापारी के रूप में काम करते हैं, लेकिन रात होते ही उनकी कलम हिंदी को जीवंत कर देती है। उनके लिए हिंदी सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि दिल की आवाज है।
डॉ. बीपी त्यागी : मरीजों की सेवा के साथ कविता का जुनून
गाजियाबाद के हर्ष ईएनटी अस्पताल के निदेशक डॉ. बीपी त्यागी दिनभर मरीजों की देखभाल में व्यस्त रहते हैं। कई बार आपात स्थिति में रात भी अस्पताल में बीतती है। फिर भी, वे रात के शांत पलों में कविता लिखते हैं। डॉ. त्यागी कहते हैं, “मरीजों और उनके परिवारों की पीड़ा को मैं कविताओं में उतारता हूं। मेरी डायरी में कई ऐसी रचनाएं हैं, जो अभी दुनिया के सामने आना बाकी हैं।”
प्रवीण कुमार : कोर्ट से कविता तक का सफर
गाजियाबाद में दो दशकों से वकालत कर रहे अधिवक्ता प्रवीण कुमार दिनभर कोर्ट में तर्क देते हैं, लेकिन रात में उनकी कलम कविताओं और कहानियों को जन्म देती है। प्रवीण कहते हैं, “बचपन से साहित्य में रुचि थी। 9वीं कक्षा से डायरी लिखना शुरू किया, जो बाद में कविताओं में बदला।” उनकी रचनाओं में *गिरती है दिवाली* (2004), *पर्दों के उस पार* (2013), *वक्त से रूबरू* (2017), *बुतों का शहर* (2019) और *नियंता नहीं हो तुम* (2022) जैसे संग्रह शामिल हैं।
प्राची प्रियंका : वकील की कलम से समाज की बात
गाजियाबाद की जिला अदालत में प्रैक्टिस करने वाली अधिवक्ता प्राची प्रियंका अपनी दमदार वकालत के लिए जानी जाती हैं। लेकिन उनके दिल में हिंदी के लिए खास जगह है। वे कहती हैं, “हिंदी मेरे लिए मानसिक थेरेपी है। मैंने 200 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं, जो समाज की समस्याओं और आम आदमी के दर्द को बयां करती हैं।” उनकी कई कविताएं साहित्यिक पत्रिकाओं में छप चुकी हैं।
मदनपाल सिंह : व्यापार के साथ साहित्य का साथ
गाजियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन के रहने वाले मदनपाल सिंह हर्बल दवाइयों का व्यापार करते हैं। देशभर में यात्रा के बावजूद वे कविताएं और कहानियां लिखने का समय निकाल लेते हैं। वे बताते हैं, “अखबार और पत्रिकाओं से कविता लिखने की प्रेरणा मिली। कवि सम्मेलनों में मेरी रचनाओं को सराहना मिलती है, जिससे हिंदी के प्रति मेरा लगाव और बढ़ता है।”
एन.के. झा: कार्यालय में हिंदी को नया आयाम
सीजीएसटी गाजियाबाद में कनिष्ठ अनुवाद अधिकारी एन.के. झा हिंदी साहित्य के लिए कई नवाचार कर रहे हैं। वे कहते हैं, “हिंदी को ज्ञान, विज्ञान और कला की भाषा बनाना होगा।” पुस्तक मेलों, कवि सम्मेलनों और प्रशिक्षण के जरिए वे कार्यालयी हिंदी को रोचक बनाने में जुटे हैं। तकनीकी क्रांति को वे हिंदी के प्रसार का बड़ा माध्यम मानते हैं, लेकिन व्हाट्सएप संदेशों से देवनागरी लिपि को खतरा भी देखते हैं। उनका सपना है कि गाजियाबाद हिंदी साहित्य का केंद्र बने।
हिंदी दिवस का महत्व
14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था। 1953 से हर साल 14 सितंबर को राजभाषा प्रचार समिति हिंदी दिवस मनाती है। यह दिन उन सभी हिंदी प्रेमियों को समर्पित है, जो अपनी व्यस्त जिंदगी में भी हिंदी को जीवंत रखते हैं।