Ranchi : झारखंड के चर्चित सारंडा जंगल क्षेत्र को वन्य जीव अभयारण्य घोषित करने के मुद्दे पर कल सुप्रीम कोर्ट में एक अहम सुनवाई होने जा रही है। इस केस ने न सिर्फ सरकार को अलर्ट कर दिया है, बल्कि राज्य की आर्थिक नीतियों, खनन गतिविधियों और पर्यावरणीय संतुलन को लेकर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
कोर्ट ने दी थी जेल भेजने की चेतावनी
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा था कि यदि राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी नहीं की, तो मुख्य सचिव को जेल भेजा जा सकता है। इसी चेतावनी के बाद 8 अक्टूबर को अगली सुनवाई तय की गई। इस बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मुख्य सचिव अविनाश कुमार दिल्ली पहुंच चुके हैं और कानूनी सलाह-मशविरा कर रहे हैं।
सरकारी विभागों में नहीं बनी सहमति
जहां एक तरफ वन विभाग अभयारण्य बनाने की दिशा में बढ़ना चाहता है, वहीं खनन और उद्योग विभाग इसका जोरदार विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस कदम से खनन, रोजगार और राज्य की आमदनी पर भारी असर पड़ेगा। वित्त विभाग ने भी इसी आशंका को दोहराया है।

अदालत पहुंचा मामला, विवाद गहराया
सारंडा अभयारण्य को लेकर 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने आदेश दिया था कि 400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किया जाए। राज्य सरकार की सुस्ती के चलते मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सरकार ने बाद में बताया कि वे 57,519 हेक्टेयर क्षेत्र को शामिल करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन यह प्रस्ताव पूर्व PCCF द्वारा बिना मंजूरी के तैयार किया गया था, जिससे मामला और उलझ गया।
खनन रोकने से भारी नुकसान का दावा
खनन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, सारंडा में 4,700 मिलियन टन लौह अयस्क है, जिसकी अनुमानित कीमत 25–30 लाख करोड़ रुपये के बीच हो सकती है। यदि खनन बंद होता है, तो राज्य को सालाना 5,000 से 8,000 करोड़ रुपये तक की रॉयल्टी का नुकसान होगा। उद्योग विभाग ने आशंका जताई है कि इससे 4 लाख से ज्यादा रोजगार भी प्रभावित होंगे।
ग्रामीणों का विरोध और कमेटी की चुनौती
राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर विचार के लिए वित्त मंत्री की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय मंत्रिस्तरीय समिति बनाई है। समिति क्षेत्र का दौरा कर रही है, लेकिन ग्रामीणों का विरोध बढ़ता जा रहा है। आदिवासी समुदाय का कहना है कि यह फैसला उनकी परंपरा और जीवनशैली पर हमला है।