गणेश चतुर्थी : विघ्‍नहर्ता और मंगलकर्ता हैं भगवान गणेश

JoharLive Desk

हमारे सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना गया है। वे अपने भक्तों के समस्त विघ्नों का हरण कर उन्हें सिद्धि-बुद्धि प्रदान करते हैं इसीलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। सोमवार, 2 सितंबर 2019 को गणेश चतुर्थी है। इस दिन घर-घर में गणेशजी की स्थापना होगी।

गणेश चतुर्थी के दिन मिट्टी की गणेश प्रतिमा पूजाघर में स्थापित कर पूर्ण विधि-विधान से भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। आज हम ‘वेबदुनिया’ के पाठकों के लिए गणेशजी की स्थापना व पूजा की अत्यंत सरल विधि बताने जा रहे हैं। जो श्रद्धालुगण मंत्रों के उच्चारण में असहज हो जाते हैं, वे इस सरल हिन्दीभाषी पद्धति से स्वयं भगवान गणेश की स्थापना कर उनकी विधिवत पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

भाद्रमास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी और गणेश चौठ के नाम से भी जाना जाता है। विघ्नविनाशक, ज्ञान, सौभाग्य और संवृद्धि के देव, समस्त मनोकामनाओं और सिद्धियों को पूर्ण करने वाले भगवान गणेश का व्रत गणेश चतुर्थी इस बार 2 सितम्बर दिन सोमवार को है। यह व्रत चतुर्थी से शुरू होकर अनंतचतुर्थी तक मनाया जाता है जिसमे गणपति की विधि विधान से पूजा की जाती है। हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में चतुर्थी होता है जो विघ्नविनाशक भगवान गणपति को समर्पित है।

पूजा विधिः भगवान गणपति का जन्म मध्य काल में हुआ था इसलिए मध्यान्ह काल में पूरे विधि विधान से गणेश पूजन जा विधान है। गणेश चतुर्थी की पूजा से घर में स्थायी धन का लाभ होता है और घर में सुख शांति बनी रहती है। गणपति की मूर्ति को पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है मूर्ति में गणपति जी का सूंढ़ बाईं ओर मुड़ी होने से ओ वक्रतुण्ड कहलाते है साथ ही उनका प्रिय मोदक और उनका वाहन चूहा साथ हो तो ऐसी प्रतिमा को शुभ माना जाता है। पूजा में ये पाँच वस्तुओं की अनिवार्यता है मोदक, दुब घास, गेंदे का फूल, केले का फल एवम् शंक आदि से से विधि पूर्वक पूजन करे।

पौराणिक कथा : जब माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को अपना द्वारपाल बनाया तो शिव जी ने द्वार प्रवेश करना चाहा तभी गणेश जी ने उन्हें रोका इससे क्रोधित होकर शिव भगवान ने अपने त्रिशूल से उनका सर काट दिया जिससे माता पार्वती क्रुद्ध हो प्रलय करने की ठानी शिव जी के निर्देशानुसार उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव हांथी का सर काट कर विष्णु जी ले आये शिव जी ने उस बालक को हांथी का सर लगा कर पुनर्जीवित किया। देवताओं ने उस बालक को अग्रणी होने का वरदान दिया, त्रिदेव ने उन्हें सर्वाध्यक्ष घोषित किया एवम् उन्हें अग्र पूज्य होने का वरदान दिया।

चतुर्थी में चंद्र दर्शन : गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन नही करें इससे चोरी का कलंक लगता है। भगवान गणेश ने चंद्र देव को श्राप दिया था की भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो चंद्र दर्शन करेगा उसे मिथ्या दोष और समाज में झूठे दोष से कलंकित होगा। चतुर्थी के चंद्र दर्शन से स्वयं भगवान श्री कृष्ण पर स्यमन्तक नामक बहुमूल्य मणि की चोरी का कलंक लगा था। इस दोष से मुक्त होने के लिए श्री कृष्ण ने भाद्रपद की गणेश चतुर्थी का व्रत किया। यदि भूल वश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन हो जाये तो मिथ्या दोष से बचने के लिए निम्न मन्त्र का जप करे-

सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥’

शुभ मुहूर्त : गणपति जी की स्थापना का शुभ मुहूर्त : 02 सितंबर की सुबह 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 36 मिनट तक जिसका समय 2 घंटे 31 मिनट का होगा।