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    Home»झारखंड»बेरोजगारी, जेपीएससी-जेएसएससी की उदासीन कार्यशैली पर एकजुट हुए सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन, कहा सरकार ले संज्ञान
    झारखंड

    बेरोजगारी, जेपीएससी-जेएसएससी की उदासीन कार्यशैली पर एकजुट हुए सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन, कहा सरकार ले संज्ञान

    Team JoharBy Team JoharJune 1, 2021No Comments5 Mins Read
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    रांची। झारखंड में बढ़ती बेरोजगारी एवं जेपीएससी-जेएसएससी की उदासीन कार्यशैली पर विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा वर्चुअल मीटिंग की गई। इस मीटिंग की अध्यक्षता करते हुए मो शाहिद अयूबी ने कहा झारखंड गठन के 20 वर्ष गुजर गए हैं, बावजूद यहां के स्थानीय एवं मूल निवासियों को आवश्यकता के अनुसार नौकरी नहीं मिल सकी है, जिससे स्थानीय बेरोजगार हैं और जीने की विकल्प तलाश रहे हैं। भरण पोषण के लिए उनके पास ऐसा कोई रोजगार नहीं है, जिससे कि वह अपने और अपने परिवार का जीविकोपार्जन बेहतर ढंग से कर सके।

    मो शाहिद ने बताया कि इस मीटिंग में कई वक्ता शामिल हुए जिन्होंने अपना बहुमूल्य परामर्श देकर मीटिंग को सफल बनाया। झारखंड छात्र संघ के केंद्रीय अध्यक्ष सह जेपीएससी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले एस अली ने कहा झारखंड में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है लेकिन इसका जेपीएससी और जेएसएससी से सीधा संपर्क नहीं है। यह सारा कार्य सरकार के जिम्मे में आता है। सरकार आदेश करती है तभी इन संस्थाओं में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू होती है। यह झारखंड का दुर्भाग्य रहा है कि अब तक जितने भी सरकार द्वारा नोटिफिकेशन इन दोनों संस्थाओं को दी गई, उसमें कहीं ना कहीं किसी न किसी प्रकार से त्रुटि ही रही जिसके कारण सभी नियुक्तियां विवादित रही और यहां के लोगों को रोजगार नहीं मिल सका।

    दूसरा कारण भ्रष्टाचार का है। जेपीएससी गठन के बाद से ही इसमें भ्रष्टाचार हावी रहा और मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। झारखंड अनुबंध सहायक प्राध्यापक संघ के अध्यक्ष डॉ निरंजन महतो ने कहा राज्य में बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण स्थानीय नीति का नहीं बनना है। इसके कारण यहां के स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिल सकी और इस पर बाहरी लोगों का कब्जा होता चला गया। जो स्थानीय नीति बनी थी, उसमें भी कई प्रकार की त्रुटियां थी, जिसका लाभ राज्य के बाहरी लोगों ने उठाया। यहां के अधिकारियों-पदाधिकारियों की गलती से यह दुर्दशा हुई है। उन्होंने स्थानीय और मूलवासी को दरकिनार करते हुए विभिन्न प्रकार की नियुक्तियों में गड़बड़ी की।

    संविदा के आधार पर विभिन्न प्रकार की नियुक्ति की गई जिसमें आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं किया गया क्योंकि संविदा में आरक्षण नियम पालन नहीं होता है। वरिष्ठ पत्रकार सह समाजसेवी डॉ मुजफ्फर हुसैन ने कहा जेपीएससी और जेएसएससी में सरकार अब तक करोड़ों रुपया फूंक चुकी है जबकि इसका आउटपुट शून्य है। जेपीएससी की वेबसाइट में जाएं तो अब तक केवल 2016-17 का ऑडिट रिपोर्ट ही ऑनलाइन है। इसके बाद का ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किया गया है। 2016-17 की ऑडिट रिपोर्ट को ही माने तो जेपीएससी में इस वर्ष करोड़ों रुपए खर्च किये गए जबकि उपलब्धि शून्य रही। यह संस्था प्रतिवर्ष 3 करोड़ के आसपास खर्च करती है। सिर्फ बिजली बिल में इन्होंने साढ़े 8 लाख रुपये खर्च किया है।

    इसी प्रकार मेहमान नवाजी, जनरेटर के ईंधन, मशीन उपकरण, छपाई, प्रकाशन, प्रचार आदि में लाखों रुपए बिना सोचे समझे फूंक दिए गए जबकि अब तक यह संस्था एक भी सफल परीक्षा आयोजित नहीं कर सकी है और ना ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सका है। दूसरा सबसे बड़ा कारण सरकार ने जेपीएससी में सदस्यों का पूर्णकालिक नहीं रखना है, जिसके कारण भी कई सारी नियुक्तियां लटकी रही। जेपीएससी में अब तक केवल प्रोन्नति और विभागीय फाइल को ही निपटाया जाता रहा है जबकि इसके खर्च में सरकार करोड़ों रुपए फूंक चुकी है।

    यही हाल जेएसएससी का है। जब यह दोनों संस्थाएं यहां के स्थानीय आदिवासी मूलवासी को नौकरी नहीं दे सकती है तो सरकार करोड़ों रुपये इन संस्थाओं के रख-रखाव पर क्यों खर्च कर रही है। इस पर मंथन करने की आवश्यकता है। सरकार इन दोनों संस्थाओं की कार्यप्रणाली को सुधारें ताकि आम लोगों के रुपए से चलने वाला यह दोनों संस्थाएं सही दिशा में कार्य करें और सरकार को भी यह सोचना चाहिए कि इन दोनों संस्थाओं की कार्यप्रणाली को इस तरह से दुरुस्त करें कि प्रतिवर्ष नियुक्ति हो ताकि आने वाली पीढ़ी को नौकरी के लिए आंदोलन एवं संघर्ष नहीं करना पड़े। फेमिनिस्ट महिला व साहित्यकार आलोका कुजूर ने कहा लॉकडाउन के दौरान लाखों लोगों की नौकरी चली गई है, उनके समक्ष जीने और भरण पोषण की समस्या उत्पन्न हो गई है, निजी संस्थाएं लगभग सभी बंद है।

    नतीजा लोग पहले से भी ज्यादा बेरोजगार हो गए हैं। सरकार को इस पर मंथन करना चाहिए और एक ठोस नीति लानी चाहिए ताकि लोगों को रोजगार मिले और वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें। मजलिस के दक्षिण छोटानागपुर प्रभारी शिशिर लाकड़ा ने कहा सरकार मनरेगा को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करें तो काफी हद तक बेरोजगारी की खाई को पाटा जा सकता है। पिछली बार हम लोगों ने वर्चुअल मीटिंग कर सरकार का ध्यान मनरेगा में लंबित राशि निर्गत करने को लेकर कराया था जिस पर सरकार ने पहल करते हुए यह राशि जारी कर दी है इससे मजदूरों को लाभ मिलेगा लेकिन इतने से ही काम नहीं खत्म हो जाना चाहिए सरकार मजदूरों और किसानों को ध्यान में रखकर नीति बनाएं क्योंकि यही दो वर्ग ऐसे हैं जो इस कोरोना काल में उपजी आर्थिक संकट से हमें बाहर निकाल सकते हैं।

    अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की जिलाध्यक्ष कुंदरेसी मुंडा ने कहा यहां के आदिवासियों एवं मूलवासियों को बाहरियों के आने से काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। स्थानीय नीति में भी भारी गड़बड़ी है, इसे सुधारा जाना चाहिए। स्थानीय को ध्यान में रखकर सरकार कोई ऐसी नीति बनाएं जिससे यहां के लोगों को रोजगार मिले।

    जेपीएससी-जेएसएससी जैसी संस्था सफेद हाथी बनकर आम लोगों के रुपए का दोहन कर रही है जिसपर सरकार को अविलंब ध्यान देना चाहिए। मीटिंग के अंत में मो शाहिद ने कहा सभी वक्ताओं के सुझाव एवं परामर्श के बाद हम एक मजबूत निष्कर्ष पर पहुंचे हैं जल्द ही इस निष्कर्ष को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास पहुंचाएंगे। मीटिंग में सहायक प्राध्यापक डॉ अजीत मुंडा, युवा समाजिक चिंतक संजय मेहता समेत दर्जनों वक्ताओं ने अपना पक्ष रखा।

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