Ranchi : भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला 2025 के छठे दिन झारखंड पवेलियन खास आकर्षण का केंद्र बना रहा। वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से लगाए गए स्टॉल में राज्य की हरित अर्थव्यवस्था, कारीगरी और ग्रामीण आजीविका को नए अंदाज में पेश किया गया। सिसल और जूट आधारित उत्पादों ने आगंतुकों को न सिर्फ आकर्षित किया, बल्कि झारखंड की बढ़ती हरी अर्थव्यवस्था की दिशा भी स्पष्ट की।
सिसल खेती बना रही नई राह
पवेलियन में प्रदर्शित सिसल यानी एगेव आधारित उत्पादों ने लोगों का ध्यान खींचा। यह पौधा कम पानी में भी आसानी से उग जाता है और खराब व बंजर जमीन पर भी पनपने की क्षमता रखता है। यही वजह है कि इसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव का मजबूत साधन माना जा रहा है। सिसल से रस्सी, मैट, बैग और कई तरह के रोजमर्रा के उत्पाद बनते हैं। इसके साथ ही इसके रस से बायो–एथेनॉल उत्पादन की संभावनाएँ भी बढ़ रही हैं, जिससे स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिल सकता है।
सिसल परियोजना से जुड़ी जानकारी साझा करते हुए एसबीओ अनितेश कुमार ने बताया कि राज्य में अब तक 450 हेक्टेयर में सिसल का पौधारोपण किया जा चुका है। विभाग इस वित्तीय वर्ष में 100 हेक्टेयर और बढ़ाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा है। पिछले वर्ष 150 मीट्रिक टन सिसल उत्पादन हुआ था, जबकि इस वर्ष 82 मीट्रिक टन का लक्ष्य रखा गया है। विभाग की पहल से हर साल करीब 90 हजार मानव दिवस का रोजगार तैयार हो रहा है, जिससे ग्रामीण परिवारों को स्थायी आय मिल रही है।

जूट उत्पादों ने दिखाई झारखंड की कारीगरी
पवेलियन में जूट से बने हस्तशिल्प भी लोगों को खूब पसंद आए। स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए बैग, सजावटी सामग्री और उपयोगी घरेलू सामान राज्य की समृद्ध परंपरा और बुनाई कौशल को दर्शाते हैं। पर्यावरण के अनुकूल ये उत्पाद घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कारीगरों के लिए नए अवसर खोल रहे हैं।
राष्ट्रीय मंच पर झारखंड का संदेश
IITF 2025 के माध्यम से झारखंड अपने सिसल और जूट उद्योगों को मजबूत करने तथा निवेश, बाजार और तकनीकी सहयोग प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। राज्य का फोकस ग्रामीण आजीविका को सशक्त करने और जलवायु अनुकूल विकास को गति देने पर है।
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