Ranchi : पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व राज्यपाल रघुवर दास ने बुधवार को पेसा कानून को लेकर राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला। रांची स्थित प्रदेश भाजपा मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए उन्होंने सरकार से सवाल किया कि जब अन्य राज्यों में पेसा कानून लागू हो चुका है, तो झारखंड में अब तक क्यों नहीं किया गया?
रघुवर दास ने कहा कि पेसा कानून के ड्राफ्ट पर सुझाव लिए जा चुके हैं, विधि विभाग और महाधिवक्ता की राय भी ली जा चुकी है, फिर भी कानून को लागू नहीं किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार विदेशी धर्म मानने वालों के दबाव में है और इसी वजह से पेसा कानून को लटकाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में ‘अबुआ सरकार’ बनी, लेकिन दूसरे कार्यकाल में भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जबकि पेसा कानून से जनजातीय समाज की संस्कृति और पहचान को मजबूती मिलती है। उन्होंने सवाल उठाया, “क्या सरकार को डर है कि कानून लागू होने से उसकी सत्ता खतरे में पड़ जाएगी?”
सरना समाज और विदेशी धर्म का मुद्दा
रघुवर दास ने कहा कि पेसा कानून को लेकर सबसे ज्यादा चिंता विदेशी धर्म को मानने वालों को है। उन्हें डर है कि यह कानून लागू होने से सरना समाज को लाभ होगा और वे सामाजिक रूप से मजबूत होंगे। उन्होंने आदिवासी बुद्धिजीवी मंच पर भी निशाना साधा और आरोप लगाया कि यह समूह भ्रम फैलाने का काम कर रहा है।
उन्होंने कहा कि झारखंड के 13 जिले संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आते हैं, जहां पारंपरिक ग्राम प्रधान और ग्राम सभा की भूमिका अहम होती है। यहां चुनाव नहीं होता, जबकि छठी अनुसूची में चुनाव और रीजनल काउंसिल की व्यवस्था होती है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ मंत्री और सत्ताधारी दल के विधायक भी पेसा कानून में अड़चन डाल रहे हैं।
प्राकृतिक संसाधनों पर ग्राम सभा की भूमिका
रघुवर दास ने कहा कि पेसा कानून लागू होने पर बालू घाट, कोयला, पत्थर और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर ग्राम सभा का नियंत्रण हो जाएगा। इससे जुड़े सिंडिकेट नहीं चाहते कि यह कानून लागू हो। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से अपील की कि वे पेसा कानून को तुरंत लागू करें, वरना इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा।
सरना धर्म कोड और धर्म कॉलम का मुद्दा
रघुवर दास ने आरोप लगाया कि हेमंत सरकार ने 2019 में जन्म प्रमाण पत्र से ‘धर्म कॉलम’ हटा दिया, जबकि उनकी सरकार में यह शामिल था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और झामुमो सरना धर्म कोड के नाम पर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नेहरू सरकार ने 1961 में धर्म कॉलम हटाया था और कांग्रेस ने दशकों तक जनगणना में सरना धर्म कोड को नजरअंदाज किया।
उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा आदिवासियों को वोट बैंक नहीं मानती, और ना ही तुष्टिकरण की राजनीति करती है। साथ ही सुझाव दिया कि जो लोग आदिवासी धर्म छोड़ चुके हैं, उनके बारे में सरकार को संकल्प लाकर उपयुक्त कदम उठाना चाहिए।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व सांसद सुदर्शन भगत, प्रदेश मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक, प्रवक्ता रमाकांत महतो, सह मीडिया प्रभारी अशोक बड़ाईक और अन्य नेता मौजूद थे।
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