
Johar Live Desk : अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा शुल्क में भारी बढ़ोतरी का ऐलान किया है। अब इस वीजा के लिए सालाना लगभग 1,00,000 अमेरिकी डॉलर (करीब 89 लाख रुपये) फीस देनी होगी। यह कदम खासकर भारतीय आईटी पेशेवरों को प्रभावित करेगा, क्योंकि वे H-1B वीजा के सबसे बड़े लाभार्थी हैं।
वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लूटनिक ने बताया कि यह नई फीस कंपनियों को कम कुशल कर्मचारियों को H-1B वीजा पर लाने से रोकने और केवल उच्च कुशल श्रमिकों को प्रोत्साहित करने के लिए है। उन्होंने कहा कि यह शुल्क सभी पदों पर समान रूप से लागू होगा, चाहे वेतन या कौशल स्तर कोई भी हो।
यह नया शुल्क वर्तमान H-1B आवेदन शुल्क से कई गुना ज्यादा है। प्रशासन अभी यह तय कर रहा है कि यह पूरी फीस एक बार ली जाएगी या सालाना। लूटनिक ने कहा, “अगर आपके पास बहुत ही कुशल इंजीनियर हैं, तो आप उनके लिए यह फीस दे सकते हैं।” उनका कहना है कि यह बदलाव प्रशिक्षण या कम अनुभव वाले कर्मचारियों को अमेरिका लाने की कंपनियों की नीति को बदल देगा।
इस फैसले से इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो जैसी बड़ी भारतीय आईटी कंपनियों पर असर पड़ सकता है, जो जूनियर और मिड-लेवल कर्मचारियों को H-1B वीजा पर अमेरिका भेजती हैं।
हालांकि H-1B वीजा की कुल सीमा यानी 65,000 सामान्य और 20,000 उन्नत डिग्री धारकों के लिए तय सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन बढ़ी हुई फीस की वजह से कंपनियां कम आवेदन करेंगी।
इस नए नियम का मकसद अमेरिकी श्रमिकों की सुरक्षा करना और अमेरिकी सरकार के लिए अधिक राजस्व जुटाना है। प्रशासन ने कहा है कि यह बदलाव जल्दी लागू किए जाएंगे, और नए नियमों के तहत सभी नवीनीकरण और नए आवेदन शामिल होंगे।
इस निर्णय के बाद भारतीय आईटी कंपनियों को अपनी रणनीतियों में बदलाव करना पड़ सकता है और वे उच्च कौशल वाले कर्मचारियों को प्राथमिकता देंगी।