Ranchi : सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड बार काउंसिल चुनाव की तारीखों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने देशभर में बार काउंसिल के चुनाव पांच चरणों में कराने की अनुमति दे दी है। इसी क्रम में झारखंड बार काउंसिल का चुनाव तीसरे चरण में होगा और इसे 15 मार्च तक पूरा कर लिया जाएगा। पहले सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों में चुनाव 31 जनवरी 2026 तक कराने का निर्देश दिया था, लेकिन बार काउंसिल ऑफ इंडिया के आग्रह पर अब चरणबद्ध तरीके से चुनाव कराने का निर्णय लिया गया है। नए आदेश के अनुसार, 30 अप्रैल 2026 तक सभी राज्यों का चुनाव पूरा कराना अनिवार्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि वकीलों की कानून की डिग्रियों का सत्यापन अनिवार्य है, क्योंकि फर्जी डिग्री के मामलों ने व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि सत्यापन प्रक्रिया चलने के बावजूद चुनाव रोके नहीं जाएंगे। जिन वकीलों का सत्यापन पूरा नहीं हुआ है, वे प्रोविजनल रूप से मतदान कर सकेंगे, लेकिन यदि बाद में उनकी डिग्री फर्जी पाई जाती है, तो उन्हें चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाएगा। कोर्ट ने सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया है कि वे विशेष टीम बनाकर डिग्री सत्यापन करें और एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट भेजें।
झारखंड बार काउंसिल का कार्यकाल 28 जुलाई 2023 को खत्म हो चुका है और फिलहाल तदर्थ कमेटी ही काउंसिल का संचालन कर रही है। वकीलों के सत्यापन कार्य में देरी के कारण काउंसिल का कार्यकाल बढ़ाया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्पष्ट है कि सदस्यता सत्यापन के नाम पर चुनाव को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

चुनाव प्रक्रिया की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय स्तर पर एक हाई पावर सुपरवाइजरी कमेटी गठित की है, जिसका नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर भी निगरानी समितियाँ बनाई गई हैं, जो चुनाव प्रक्रिया पर नजर रखेंगी।
जिला बार संघों और हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन के पदाधिकारियों के चुनाव लड़ने को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 2016 में “वन मैन, वन पोस्ट” का नियम लागू किया था, जिसके अनुसार कोई व्यक्ति दो अलग-अलग संघों में एक साथ पदधारी नहीं हो सकता। कुछ राज्यों में यह नियम लागू हो चुका है, लेकिन झारखंड में इस पर अभी निर्णय बाकी है। माना जा रहा है कि चुनाव तिथि की घोषणा के साथ ही बार काउंसिल ऑफ इंडिया इस पर स्पष्ट निर्देश दे सकता है। यह नियम फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती के रूप में लंबित है।
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