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    Home»झारखंड»दिशोम गुरु का सफर… शुरू से अंत तक… जानें
    झारखंड

    दिशोम गुरु का सफर… शुरू से अंत तक… जानें

    Kajal KumariBy Kajal KumariAugust 4, 2025No Comments3 Mins Read
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    दिशोम
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    Ranchi : झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन का आज सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसके बाद उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दिल्ली रवाना हुए। डॉ. एके भल्ला, अध्यक्ष, नेफ्रोलॉजी विभाग, सर गंगाराम अस्पताल ने कहा, “यह बताते हुए दुख हो रहा है कि शिबू सोरेन जी को लंबी बीमारी के बाद आज सुबह 8:56 बजे मृत घोषित कर दिया गया।”

    नेमरा में हुआ था जन्म

    शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन रामगढ़ और हजारीबाग जिले के नेमरा गांव में हुआ था। उनके पिता सोबरन मांझी उस क्षेत्र के सबसे शिक्षित व्यक्तियों में थे और समाज में शिक्षा का प्रचार कर रहे थे। उस समय झारखंड में महाजनी प्रथा अपने चरम पर थी, जिसमें किसानों को उनकी उपज का केवल एक तिहाई हिस्सा मिलता था और बाकी महाजन ले लेते थे। ब्याज न चुका पाने वालों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। सोबरन मांझी इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाते थे, जिसके कारण 1957 में उनकी हत्या कर दी गई।

    पिता की हत्या के बाद शुरू किया आंदोलन

    पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने हिम्मत और जुनून के साथ परिवार को संभाला और महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में महिलाएं दरांती और पुरुष धनुष-बाण लेकर जमींदारों के खेतों से फसल काट लाते थे, जिसे ‘धनकटी आंदोलन’ के नाम से जाना गया। इस दौरान कई लोग मारे गए और शिबू सोरेन को पारसनाथ के जंगलों में छिपना पड़ा, लेकिन उन्होंने आंदोलन को कभी नहीं रोका।

    ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि

    शिबू सोरेन का प्रभाव इतना बढ़ा कि महाजनी प्रथा को ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। झारखंड में ढोल की आवाज सुनकर लोग समझ जाते थे कि गुरुजी का संदेश आया है। धनकटी आंदोलन ने उन्हें आदिवासी समाज का बड़ा नेता बना दिया और उन्हें ‘दिशोम गुरु’ यानी जंगल और जमीन का नेता कहा जाने लगा।

    झारखंड मुक्ति मोर्चा और अलग राज्य का गठन

    4 फरवरी 1972 को शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और कामरेड एके राय ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य अलग झारखंड राज्य की मांग को तेज करना था। उनकी मेहनत रंग लाई और 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक अलग राज्य बना। जेएमएम के गठन के समय बिनोद बिहारी महतो अध्यक्ष और शिबू सोरेन महासचिव बने। बाद में शिबू सोरेन ने पार्टी की कमान संभाली और झारखंड में जेएमएम का दबदबा कायम रहा।

    राजनीतिक सफर

    शिबू सोरेन ने 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1980 में वे जीते और इसके बाद 1989, 1991, 1996, 2004, 2009 और 2014 में सांसद चुने गए। 2002 में वे कुछ समय के लिए राज्यसभा सदस्य रहे। 2004 में मनमोहन सिंह सरकार में वे कोयला मंत्री बने। झारखंड के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने 2005, 2008 और 2009-10 में कार्यभार संभाला। वर्तमान में वे राज्यसभा सांसद थे।

    आदिवासी समाज का बड़ा नुकसान

    शिबू सोरेन के निधन से आदिवासी समाज ने अपने सबसे बड़े नेताओं में से एक को खो दिया है। उनकी संघर्षमयी जिंदगी और झारखंड आंदोलन में योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।

    Also Read : BIG BREAKING : दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन, CM हेमंत ने किया पोस्ट

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