Johar Live Desk : ओडिशा के पुरी शहर में आज से विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो गई है। यह 12 दिवसीय आयोजन 27 जून से 8 जुलाई तक चलेगा। भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विशाल लकड़ी के रथों पर सवार होकर मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा करेंगे। यह पर्व आस्था, संस्कृति और एकता का प्रतीक है। आज सुबह 5:25 से 7:22 तक सर्वार्थ सिद्धि योग और 11:56 से 12:52 तक अभिजीत मुहूर्त में रथ यात्रा शुरू हुई। पुरी के राजा ने पारंपरिक ‘छेरा पन्हारा’ रस्म निभाई, जिसमें उन्होंने सोने की झाड़ू से रथों के नीचे का हिस्सा साफ किया। यह रस्म विनम्रता और सेवा का प्रतीक है।
तीन रथ, तीन नाम :
भगवान जगन्नाथ का 16 पहियों वाला रथ ‘नंदीघोष’ है, जिसकी रस्सी को शंखाचूड़ा नाड़ी कहते हैं। बलभद्र का 14 पहियों वाला रथ ‘तालध्वज’ और उसकी रस्सी ‘बासुकी’ है। सुभद्रा का 12 पहियों वाला रथ ‘दर्पदलन’ है, जिसकी रस्सी को स्वर्णचूड़ा नाड़ी कहते हैं। रस्सी खींचना श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक सौभाग्य माना जाता है। रथ यात्रा में कोई भेदभाव नहीं है। हर धर्म, जाति या देश का व्यक्ति रथ खींच सकता है, बशर्ते उसका मन भक्ति से भरा हो। मान्यता है कि रथ खींचने से मोक्ष मिलता है और यह हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य देता है।
कहानी और परंपरा :
स्कंद पुराण के अनुसार, सुभद्रा की नगर भ्रमण की इच्छा पर भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने उन्हें रथ पर बिठाकर गुंडिचा मंदिर तक ले गए। यही परंपरा आज रथ यात्रा के रूप में मनाई जाती है। हर साल नए रथ बनाए जाते हैं, जो नीम की लकड़ी से तैयार होते हैं।
नवकलेवर की खास रस्म :
हर 12 साल में भगवान की मूर्तियों को ‘नवकलेवर’ प्रक्रिया से बदला जाता है। मूर्तियों के अंदर मौजूद पवित्र लकड़ी को बदला नहीं जाता। इस दौरान पुरी में बिजली बंद कर दी जाती है और पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर मूर्तियों का स्थानांतरण करते हैं। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होकर सुख-शांति और मोक्ष की कामना करते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से रथ यात्रा में हिस्सा लेने से सौ यज्ञों का फल मिलता है और पिछले जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।