Johar Live Desk : शारदीय नवरात्रि के चतुर्थी तिथि को मां कूष्मांडा की उपासना के लिए विशेष माना जाता है। देवी दुर्गा का यह स्वरूप ब्रह्मांड की रचनाकर्ता के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि मां कूष्मांडा ने अपनी हल्की मुस्कान और दिव्य ऊर्जा से सृष्टि की रचना की थी। इस बार तृतीया तिथि दो दिन होने के कारण नवरात्रि 10 दिनों तक मनाई जा रही है, इसलिए पांचवें दिन मां कूष्मांडा की विशेष पूजा होगी।
पूजा विधि
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। मां की प्रतिमा या तस्वीर को कलश के साथ स्थापित करें। दीप जलाएं, लाल फूल, चंदन, सिंदूर, धूप और दीप अर्पित करें। भोग में मालपुए, मीठा प्रसाद और फल चढ़ाएं। इसके बाद ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः मंत्र का 108 बार जाप करें। अंत में मां की आरती कर परिवार की सुख-शांति की प्रार्थना करें।
मंत्र और भोग
मां कूष्मांडा को मालपुए और मीठा भोग बहुत प्रिय है। भक्त श्रद्धा से इन्हें अर्पित करते हैं। मां का मुख्य मंत्र ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः है, जिसके जाप से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है।

आरती
मां कूष्मांडा की आरती में भक्त उनकी महिमा गाते हैं :
कूष्मांडा जय जग सुखदानी, मुझ पर दया करो महारानी।
पिंगला ज्वालामुखी निराली, शाकंबरी मां भोली भाली।
यह आरती भक्ति और श्रद्धा के साथ गाई जाती है, जिसमें मां से सुख, शांति और संकटों से मुक्ति की प्रार्थना की जाती है।
महत्व
मां कूष्मांडा की पूजा से गंभीर रोगों से छुटकारा मिलता है और घर में सुख, शांति व समृद्धि आती है। भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के कष्ट धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं।
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