Ranchi : शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की उपासना को समर्पित होता है। इस दिन श्रद्धालु साधना, संयम और तप की देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी भक्त मां ब्रह्मचारिणी की सच्चे मन से आराधना करता है, उसे कठोर साधना का फल मिलता है और जीवन में विजय, सिद्धि और संयम का मार्ग प्राप्त होता है।
कैसा है मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप?
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और शांत है। उनके दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल होता है। वे संयम, तपस्या और साधना की प्रतीक मानी जाती हैं।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। उन्होंने वर्षों तक केवल फल, मूल, शाक और बेलपत्र पर जीवित रहकर कठिन साधना की। अंत में उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और भगवान शिव को उनका पति बनाया।
पूजा विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा पंचामृत स्नान से शुरू होती है। इसके बाद उन्हें अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, सफेद फूल (कमल या गुड़हल) और मिश्री का भोग अर्पित किया जाता है। सफेद रंग के वस्त्र धारण कर मां का ध्यान करना शुभ माना जाता है।
महत्वपूर्ण मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कर पद्माभ्यां अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
क्या मिलती है मां की कृपा से?
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से जीवन में कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है। साथ ही, व्यक्ति में त्याग, संयम, धैर्य और सदाचार जैसे गुणों का विकास होता है। ऐसा माना जाता है कि मां की कृपा से इच्छाओं और भौतिक लालसाओं से मुक्ति भी मिलती है।
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