
Ranchi : देशभर में विजयादशमी के दिन रावण दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है। लेकिन झारखंड के देवघर में यह नजारा देखने को नहीं मिलता। यहां रावण दहन की परंपरा ही नहीं है। इसकी एक खास वजह है देवघर का बाबा बैद्यनाथ धाम।
दरअसल, बाबा बैद्यनाथ धाम को रावणेश्वर धाम भी कहा जाता है। मान्यता है कि यही वह जगह है, जहां रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करके शिवलिंग की स्थापना करवाई थी। रावण को भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है।
बाबा धाम के वरिष्ठ पुजारी धर्मचंद मिश्र बताते हैं कि रावण विद्वान, तपस्वी और शिवभक्त था। भले ही उसने माता सीता का हरण करके पाप किया, लेकिन उसकी भक्ति, ज्ञान और तप को देवघरवासी नहीं भूलते। इसलिए यहां रावण का दहन नहीं किया जाता। मंदिर के पुजारी बबलू नरौनी कहते हैं कि उन्होंने आज तक देवघर में रावण दहन होते नहीं देखा। यहां शिवभक्तों का सम्मान होता है, और रावण भी तो शिव का अनन्य भक्त था।
मंदिर के मुख्य प्रबंधक रमेश परिहस्त बताते हैं कि यहां की जनता की यही आस्था है, और इसी कारण रावण दहन से परहेज किया जाता है।
विजयादशमी के मौके पर जहां देश के अलग-अलग हिस्सों में रावण जलाया जाता है, वहीं देवघर में सिर्फ दुर्गा पूजा की धूम रहती है बिना रावण दहन के।
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