Ranchi : झारखंड में करमा पर्व का उत्साह चरम पर है। यह पर्व प्रकृति की पूजा, भाई-बहन के प्रेम और सामाजिक एकता का प्रतीक है। आदिवासी समाज सदियों से इस त्योहार को धूमधाम से मनाता आ रहा है। इस बार भी रांची सहित पूरे झारखंड में करमा पर्व को लेकर खास उत्साह देखा जा रहा है।
प्रकृति और आस्था का संगम
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला करमा पर्व प्रकृति और परंपरा का अनूठा मेल है। करम देवता को धरती की उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। लोग करम वृक्ष की डाल की पूजा करते हैं और परिवार की खुशहाली व भाइयों की लंबी उम्र की कामना करते हैं। पूजा में ‘जावा’ का खास महत्व है, जिसे अनाज और मिट्टी से तैयार कर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
तैयारी और रस्में
पर्व से पहले गांव की महिलाएं और युवतियां घर-घर जाकर धान, मक्का, चना और गेहूं इकट्ठा करती हैं। रात में करमा डाली की स्थापना होती है, जहां लोग गीत और नृत्य के साथ उत्सव मनाते हैं। महिलाएं पारंपरिक कपड़े पहनती हैं, और पुरुष ढोल-मांदर की थाप पर नाचते हैं। करमा गीतों में भाई-बहन का प्रेम और प्रकृति की महिमा झलकती है।
करमा कथा का महत्व
करमा पर्व पर करमा और धरमा की कथा सुनाई जाती है। कहानी के अनुसार, करमा के घर छोड़ने पर गांव में मुश्किलें आईं। धरमा ने उसे वापस लाकर पूजा शुरू की, जिससे सुख-शांति लौटी। आज भी यह कथा पर्व का अहम हिस्सा है।
भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक
करमा पर्व भाई-बहन के प्रेम का भी उत्सव है। बहनें भाइयों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं, और भाई उपहार देकर रिश्ते को मजबूत करते हैं। यह परंपरा राखी की तरह ही खास है।
रांची में सांस्कृतिक आयोजन
इस साल रांची में करमा नृत्य, गीत और सामूहिक पूजा के कई आयोजन हो रहे हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी कई कार्यक्रमों में शामिल होंगे और शुभकामनाएं देंगे। सरकार ने करमा पर्व को झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर बताया है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
करमा पर्व सामूहिकता, भाईचारे और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। वृक्ष पूजा के जरिए यह प्रकृति के महत्व को दर्शाता है। अब यह पर्व आदिवासी समाज तक सीमित नहीं रहा, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय हो रहा है।
आधुनिक समय में प्रासंगिकता
आज के दौर में, जब पर्यावरण और सामाजिक चुनौतियां बढ़ रही हैं, करमा पर्व प्रकृति की रक्षा और आपसी सौहार्द का पाठ पढ़ाता है। यह त्योहार झारखंड की साझा सांस्कृतिक पहचान बन चुका है और हर साल लोगों में नई ऊर्जा और आशा जगाता है।
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