Ranchi: झारखंड राज्य आंदोलन के प्रखर नेता और अमर शहीद निर्मल महतो को उनके शहादत दिवस पर पूरे राज्य में श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किया गया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर एक भावुक संदेश साझा करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री ने उन्हें “वीर माटी पुत्र” और “महान आंदोलनकारी” कहते हुए लिखा, “वीरों और क्रांतिकारियों की वीर भूमि है हमारा झारखंड! इसी वीर भूमि के वीर माटी पुत्र, महान झारखंड आंदोलनकारी, अमर वीर शहीद निर्मल महतो जी के शहादत दिवस पर शत-शत नमन। वीर शहीद निर्मल महतो अमर रहें! झारखंड के वीर अमर रहें!”
मुख्यमंत्री का यह संदेश केवल एक श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि झारखंड के इतिहास, संघर्ष और गौरवमयी परंपरा को वर्तमान पीढ़ी तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम भी है। लोगों ने इस संदेश को भावनात्मक रूप से स्वीकार किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि निर्मल महतो आज भी जनता के दिलों में जीवित हैं।
वीरों और क्रांतिकारियों की वीर भूमि है हमारा झारखण्ड!
इसी वीर भूमि के वीर माटी पुत्र, महान झारखण्ड आंदोलनकारी, अमर वीर शहीद निर्मल महतो जी के शहादत दिवस पर शत-शत नमन।
वीर शहीद निर्मल महतो अमर रहें!
झारखण्ड के वीर अमर रहें!
अमर रहें! अमर रहें!— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) August 8, 2025
निर्मल महतो का जन्म 25 दिसंबर 1950 को हुआ था। अपने जीवन के शुरुआती वर्षों से ही उन्होंने आदिवासी और मूलवासी समुदायों के अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया था। उनका मानना था कि झारखंड का सच्चा विकास तभी संभव है जब यहां के संसाधनों पर यहां के निवासियों का स्वामित्व हो। वे उन नेताओं में से थे जिन्होंने यह स्पष्ट रूप से महसूस किया कि अलग राज्य की मांग को पूरा करने के लिए एक सशक्त राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता है।
इसी सोच के साथ उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में यह आंदोलन एक व्यापक जनांदोलन में तब्दील हो गया। उनकी संगठन क्षमता, ओजस्वी वक्तृत्व और जमीनी स्तर पर काम करने की शैली ने हजारों युवाओं को आंदोलन से जोड़ा। वे समाज के वंचित और शोषित तबकों को एकजुट करने में सफल रहे, जिससे आंदोलन को नई ऊर्जा और दिशा मिली।
8 अगस्त 1987 को जब निर्मल महतो की हत्या हुई, तब पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई। हालांकि, उनकी शहादत से आंदोलन की गति धीमी नहीं पड़ी, बल्कि यह और भी सशक्त हुआ। उनका बलिदान झारखंड की आत्मा में समा गया और 15 नवंबर 2000 को झारखंड को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता मिली। यह उपलब्धि उस संघर्ष का प्रत्यक्ष परिणाम थी, जिसका नेतृत्व निर्मल महतो जैसे नेताओं ने किया।
आज भी झारखंड उनकी स्मृति को सहेजे हुए है। धनबाद में स्थित शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल न सिर्फ उनके नाम को जीवित रखता है, बल्कि स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में जनता की सेवा कर उनके आदर्शों को भी आगे बढ़ा रहा है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह भावपूर्ण संदेश बताता है कि राज्य सरकार उन महान आत्माओं को सर्वोच्च सम्मान देती है, जिन्होंने झारखंड के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। निर्मल महतो सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार और संघर्ष की प्रतीक हैं, जिनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।