50 सालों का लाल आतंक….

साल 1967। पश्चिम बंगाल में जमींदारों के शोषण के खिलाफ किसान, आदिवासी एकजूट होने लगे थे। सिलीगुड़ी में आंदोलन का नेतृत्व सिलीगुड़ी किसान सभा के तहत जंगल संथाल नाम के आदिवासी नेता के द्वारा की जा रही थी। 19 मई 1967 को जंगल संथाल ने भाकपा माओवादी नेता कानू सान्याल और चारू मजूमदार को अपना नेता घोषित किया। ये वो दौर था जब पहली बार देश में शोषित, वंचित, भूमिहीन किसानों का तबका लालफीताशाही और जमींदारी शोषण के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन के लिए तैयार हो रहा था। पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव नक्सलवाड़ी में अचानक ही एक दिन एक बटाईदार मजदूर की जमींदारों ने पिटाई कर दी। 24 मई 1967 को जमींदारों के पक्ष में पुलिस की टीम सशस्त्र आंदोलन की बिगुल फुंक चुकी नेताओं को गिरफ्तार करने नक्सलवाड़ी पहुंची। जंगल संथाल के नेतृत्व में आदिवासी आंदोलनकारियों ने पुलिस टीम को एंबुस किया। पुलिस इंस्पेक्टर को तीर से छल्ली कर मौत के घाट उतार दिया गया। पहली बार था जब पुलिस नक्सली नेताओं के निशाने पर आयी। सशस्त्र आंदोलनकारियों के ऑल इंडिया कॉडिनेशन कमेटी ऑफ कम्यूनिस्ट रिवॉल्यूशनरीज ने लेनिन के जन्म दिवस पर 22 अप्रैल 1967 नयी पार्टी सीपीआइ एमएल की नींव रखी। 1967 में नक्सलवाड़ी से शुरू सशस्त्र आंदोलन की विचारधारा नक्सलवाद ने आहिस्ता आहिस्ता अविभाजित बिहार, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, उड़िसा में पांव पसारे। लेकिन 50 सालों में नक्सलवाद किसानों के हक की आवाज के लिए नहीं, बल्कि लाल आतंक के लिए जाना जा रहा।

झारखंड में नक्सलियों ने यूं बनाया पैठ
झारखंड में भी जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ नक्सलवादी आंदोलन की शुरूआत 80 के दशक में हुई। अविभाजित बिहार में रोहतास, कैमूर की पहाड़ी से नक्सली गतिविधियों का संचालन होता था। तब के नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा, निराला यादव इसकी मजबूत धूरी थे। बाद में कामेश्वर संगठन से अलग हुए। सरेंडर कर मुख्यधारा में लौटे। चुनाव लड़ा, सांसद भी बने। लेकिन नक्सली गतिविधियां की जद में पलामू के बाद पूरा झारखंड आ गया। 80 के दशक में चतरा और गिरिडीह में ग्रामीणों को एकजूट करने में नक्सली सफल रहे थे। उस समय गिरिडीह में लालखंडी नाम से एक गूट सक्रिय हुआ था। जो जुल्म के खिलाफ लोहा तो ले रहा था, लेकिन उसके पास हथियार नहीं थे। इसलिए दबंग मानसिकता के लोग इस संगठन को कूचलने में लगे थे। लालखंड में जो शामिल थे,उन्होंने दहशत फैलाने के लिए लोगों की गर्दन काट कर बीच सड़क पर रखना शुरू किया। संगठन के लोग तेज तलवार, धारदार हथियार का इस्तेमाल करने लगे। तात्कालिक बंगाल पुलिस तब नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज कर चुकी थी। नक्सलियों की एक टोली छुपते छुपाते गिरिडीह के पारसनाथ पहुंची, वहां लालखंडियों से नक्सली संगठन के नेताओं की मुलाकात हुई। लालखंड का नक्सली संगठन के साथ विलय हुआ। इस इलाके में नक्सलियों ने अपनी संगठन इतनी मजबूत की कि समानांतर हुकूमत वह चलाने लगे। विकास से अछूता चतरा संयुक्त बिहार का कमजोर जिला माना जाता था। चतरा की 70 फीसदी वन भूमि थी, पहुंच पथ नहीं के बराबर थे। कुंदा में रहने वाले लोग जमींदार मानसिकता के थे। उस इलाके में गंझू जाति के लोग अधिक थे। वंशानुगत बंधुआ मजदूरी करने वाले गंझूओं को नक्सलियों ने भरोसे में लिया और जमींदारों के खिलाफ मुहिम छेड़ी। पांच साल में हालात ये बने कि जमींदारों को घर छोड़ना पड़ा। कईयों के घर में आगजनी हुई, जमीन छिन कर भूमिहीनों को बांटा गया। ऐसे में नक्सली आंदोलन से लोगों का जुड़ाव हुआ। कुंदा में थाना झारखंड अलग राज्य बनने के बाद बना। थाना बनने के कुछ महीनों बाद वहां के डीएसपी विनय भारती और सीआरपीएफ कमांडेट को ट्रैप कर मार दिया गया था। कुंदा थाना खोले जाने के विरोध में नक्सलियों ने इस वारदात को अंजाम दिया था। इसके बाद नक्सलियों ने हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, पलामू, गढ़वा, लातेहार, लोहरदगा, सिमडेगा, चाइबासा का कोरिडोर बनाया। इस रास्ते से दूसरे राज्य के नक्सली झारखंड आते थे। छतीसगढ़, उड़िसा, पश्चिम बंगाल, बिहार के नक्सली इस कॉरिडोर का इस्तेमाल करने लगे।
सारंडा, सरयू और झूमरा में था प्रशिक्षण कैंप
नक्सलियों की स्थिति झारखंड में इतनी मजबूत हो गई थी कि सारंडा, सरयू और झूमरा में इनका प्रशिक्षण होता था। इसमें दूसरे राज्यों के माओवादी भी शामिल होते थे। इसकी भनक पुलिस को काफी बाद लगी।
विकास योजनाओं के जरिए हो रही परिवर्तन की कोशिश
– केंद्र सरकार के द्वारा झारखंड में एडिशनल सेंटर एसीस्टेंस(एसीए), एसआइइ और रोड रिक्वायरमेंट प्लान (आरआरपी)चलायी जा रहीं। एसीए योजना झारखंड के उग्रवाद प्रभावित 17 जिलों में चल रही है। इस योजना के तहत झारखंड के प्रति जिलों को 30 करोड़ का फंड विकास योजनाओं के लिए दिया जा रहा। झारखंड को इस योजना के तहत केंद्र से 1894.19 करोड़ मिल चुके हैं।
– रोड रिक्वायरमेंट प्लान केंद्र सरकार के द्वारा झारखंड के 11 जिलों में जलायी जा रही। इस योजना के तहत नक्सल इलाकों में सड़क निर्माण किए जाने की योजना चल रही। साल 2015 तक इस योजना के तहत झारखंड में सड़क निर्माण और रोड क्नेटिविटी बेहतर बनाने में 805 करोड़ रुपये की राशि खर्च हुई है।
– पंडित दिनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत अतिउग्रवाद प्रभावित जिलों में रोशनी कार्यक्रम चलाया जा रहा। झारखंड के 6 जिलों में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा। झारखंड में उग्रवाद प्रभावित जिलों में कौशल विकास के लिए ग्रामीणों को रोशनी प्रोजेक्ट के तहत 100.96 करोड़ की राशि दी जा चुकी है।
– उग्रवाद प्रभावित झारखंड के 10 जिलों में एक- एक आइटीआइ और दो – दो कौशल विकास केद्र खोले जाने हैं। इस योजना के तहत झारखंड को अबतक 69.48 करोड़ का फंड मिला है।
– उग्रवाद्र प्रभावित क्षेत्रों में संचार व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए झारखंड में बीएसएनएल के 782 मोबाइल टावर लगाने का काम चल रहा।
सारंडा एक्सल प्लान
पश्चिमी सिंहभूम के सारंडा झारखंड में नक्सली गतिविधियों का मुख्य केंद्र हुआ करता था। यहां के घने जंगलों में माओवादी कैंप चलते थे। पूरा इलाका माओवादियों के कब्जे में था। साल 2011 में भारत सरकार ने सारंडा एक्शल प्लान की घोषणा की। छह सालों से चल रहे सारंडा एक्शन प्लान की वजह से सारंडा में माओवादियों की गतिविधि थम सी गई।
क्या है सारंडा एक्शन प्लान में-
– सारंडा के 7000 ग्रामीण आदिवासी परिवारों के बीच सोलर लैंप, साइकिल, रेडियो का वितरण किया गया, वहीं 200 हैंड पंप गांव में लगाए गए।
– सभी 7000 परिवारों को बीपीएल व इंदिरा आवास योजना का लाभ मुहैया कराया गया।
– वन अधिकार अधिनियम के तहत चार हेक्टेयर पट्टा जमीन का वितरण ग्रामीणों को किया गया। पेंशन से भी बुजुर्गों को लाभांवित किया गया।
– ग्रामीणों और विकास योजनाओं को सुरक्षा देने के लिए सीआरपीएफ की प्रतिनियुक्ति की गई। मनरेगा जैसी योजनाओं में यहां के ग्रामीणों को कैश पेमेंट देने की व्यवस्था की गई। आजीविका योजना के जरिए भी यहां ग्रामीणों को रोजगार दिया जा रहा।
झुमरा एक्शन प्लान
सारंडा की तर्ज पर ही झुमरा में माओवादियों गतिविधियों पर विकास योजनाओं के जरिए लगाम लगाने की कवायद शुरू हुई। झुमरा एक्शन प्लान के तहत 491 करोड़ रुपये की राशि बोकारो शहर के आसपास के 90 किलोमीटर एरिया में विकास योजनाओं पर खर्च की जा रही। इस योजना के तहत सड़क निर्माण, हेल्थ सेंटर, पीडीएस दुकानें, स्कूल पव पंचायत भवनों का निर्माण झुमरा जोन में किया जा रहा। इस योजना के तहत पंचमो पंचायत में 30 बेड के अस्पताल और स्कूल भवन का निर्माण अबतक पूरा हुआ है।
सरयू एक्शन प्लान
सारंडा और झुमरा के तर्ज पर ही सरयू एक्शन प्लान की गई है। लातेहार जिले में इस योजना के तहत चार ब्लॉक, 12 पंचायत व 114 उग्रवाद प्रभावित जिलों में विकास योजनाएं चलायी जा रहीं।
रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण
फोकस एरिया डेवलपमेंट प्लान के तहत 23 जिलों में निजी सुरक्षा एजेंसिया चलायी जा रहीं। उन एजेंसियों के द्वारा ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोड़ा जा रहा।
करोड़ों का है ईनाम, ये नक्सल लीडर हैं चुनौती
पोलित व्यूरो मेंबर प्रशांत बोस उर्फ किसान दा, मिसिर बेसरा, सेंट्रल कमेटी मेंबर देवकुमार सिंह उर्फ अरिवंद जी, असीम मंडल, प्रयाग मांझी, सैक मेंबर उमेश यादव, गौतम पासवान, चमन उर्फ लंबू, बलवीर महतो, सुनील मुर्मू, प्रद्यूमन शर्मा, अनल दा, नंदलाल मांझी, जया, अजीत उरांव, बिरसा जी, अजुन, लालचंद हेंब्रम, विजय यादव, राहुल उर्फ रंजीत पाल, करूणा, सौरभ यादव, संदीप दा, कान्हू राम मुंडा, रीजनल कमेटी मेंबर रघुनाथ हेंब्रम, संजय महतो, अजय महतो, बुधेश्वर उरांव, नवीन उर्फ संजीत यादव, , कुंदन पाहन, छोटू जी, रणविजय महतो, अभ्यास र्भूंइया, मदन महतो, मुराद जी, इंदल गंझू, रमेश गंझू, रामप्रसाद मार्डी, मोछू, दुर्योधन महतो, जोनल कमांडर संटू उर्फ संतोष भूईंया, कुंदन यादव, सुरेश सिंह, परमजीत उर्फ सोनू दास, बुधन मियां, मृत्यूंजय जी, रवींद्र गंझू, सहदेव राय, रहीमन जी, दीपक यादव समेत अन्य। पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी मेंबर पर एक करोड़, सैक सदस्यों पर 25 लाख के ईनाम की घोषणा सरकार ने की है।

नक्सलियों की संख्या दो हजार, खर्च हो गए 10 साल में 60 हजार करोड़
झारखंड में नक्सली अभियान पर करीब 60 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। 10 साल के अंदर अभियान में शामिल पुलिसकर्मियों, सीआरपीएफ के जवान और अधिकारी, एसटीएफ, जैप और उग्रवादग्रस्त इलाकों के विकास के लिए आवंटित विशेष पैकेज को मिला देने से यह आंकड़ा 60 हजार करोड़ को पार कर जाता है। पुलिस के पास उग्रवादियों की जो सूची है उसमें 2408 नक्सलियों की सूची है जो लिस्टेड है। इसमें एमसीसीआई जो लाल आतंक के नाम से जाना जाता है उसकी संख्या करीब एक हजार है, जो झारखंड में सक्रिय है। वर्ष 2001 से 2017 के मार्च माह तक नक्सलियों ने करीब 1300 लोगों को मार दिया। वहीं 500 नक्सली मारे गए। इतनी ही संख्या में पुलिसकर्मी भी मारे गये। राज्य को नक्सलियों से मुक्त कराने के लिए 13 भागों में बांटा गया और नक्सली इलाकों में अलग-अलग एक्शन प्लान चलाये जा रहे हैं। सारंडा में सरयू, सारंडा एक्शन प्लान, सरयू एक्शन प्लान सहित 13 एक्शन प्लान झारखंड में चल रहे हैं। इनपर करीब पांच हजार करोड़ खर्च किया जाना है। झारखंड पुलिस के वेतन और अन्य भत्तों पर सालाना चार हजार करोड़ खर्च होते हैं। झारखंड में करीब 70 हजार पुलिसकर्मी हैं। सीआरपीएफ की संख्या 120 कंपनी है जो यहां प्रतिनियुक्त है। इसपर 200 करोड़ का खर्चा है। एसआरइ मद में 10 वर्षों में 700 करोड़ रुपये खर्च किये गये। ईंधन, भोजन और वाहन पर 300 करोड़ खर्च हुए। हथियार, गोल-बारूद और पुलिस आधुनिकीकरण पर 500 करोड़ खर्च हुए। थाना भवनों के निर्माण पर 300 करोड़ खर्च हुए। इतनी मोटी राशि राज्य में सक्रिय करीब दो हजार नक्सलियों के खात्मे के लिए की गई। झारखंड में नक्सलियों पर इनाम भी घोषित है जो करीब छह करोड़ रुपये है। झारखंड में केंद्रीय गृह मंत्रालय की सूची में 24 में से 18 जिला उग्रवादग्रस्त हैं।
राज्य बनने के समय आठ जिला था प्रभाव में : झारखंड जब अलग राज्य बना तब उस समय आठ जिले इसके गिरफ्त में थे। इसमें पलामू, गढ़वा, चतरा, लातेहार, गिरिडीह, गुमला, लोहरदगा और चाईबासा शामिल थे। बाद में धीरे-धीरे नक्सलियों ने अपना विस्तार किया और 24 में से 18 जिले नक्सलग्रस्त माने गए। वर्ष 2014 के बाद नक्सली कार्रवाई में कमी आयी है, लेकिन आतंकियों से भी बड़े खतरा के रूप में नक्सलियों ने अपनी पैठ बनायी है। सालाना करीब एक हजार करोड़ रुपया लेवी का वसूलना शुरू किया।
केंद्र की सूची में 35 नक्सलग्रस्त जिला, 14 झारखंड के : केंद्र की सूची मेन 35 नक्सलग्रस्त जिला है। इसमें झारखंड के लोहरदगा, रामगढ़, दुमका, गढ़वा, रांची, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, हजारीबाग, बोकारो, पलामू, लातेहार, खूंटी, गुमला, गिरिडीह है। इस सूची में आंध्र प्रदेश के विशाखा पटनम, बिहार के औरंगाबाद, गया, जमुई, मुजफ्फरपुर, बांका, नवादा, छत्तीसगढ़ के बीजापुड़, सुकमा, बस्तर, दंतेवाड़ा, कंकेर, नारायणपुर, राजनंदगांव, कोंडगांव, महाराष्ट्र गढ़चरौली, उड़ीसा के कौरियापुर, मलकानगिरि और तेलंगाना के खमाम जिला शामिल हैं। ये जिले नक्सलियों के गढ़ माने जाते हैं।
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क्या है सरेंडर पॉलिशी
नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए सरकार ने सरेंडर पॉलिशी बनायी है। इसमें आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को ईनाम की राशि दी जाती है। तीन लाख रुपये अलग से मुआवजा राशि देने का प्रावधान है। आचरण अच्छा रहा तो ओपन जेल में रखा जाता है। साथ ही सरकार अपनी इच्छा पर सरकारी नौकरी भी दे सकती है। पत्नी को कौशल विकास का प्रशिक्षण, दो बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा का खर्च और मकान बनाने के लिए राज्य के किसी भी हिस्से में चार डिसमिल जमीन दिए जाने का प्रावधान है। केस लड़ने के लिए सरकारी वकील की सुविधा भी दी जाती है।
झारखंड में इन संगठनों पर भी है प्रतिबंध
एमसीसीआई, पीएफएफआइ, एमसीसीआई के अग्र संगठन क्रांतिकारी किसान कमेटी, नारी मुक्ति संघ, क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच, जेपीसी, टीपीसी, जेजेएमपी, एसजेएमएम, सशस्त्र पीपुल्स मोर्चा, संघर्ष जनमुक्ति मोर्चा, झारखंड टाइगर ग्रूप।
किस संगठन के कितने सदस्य
एमसीसीआई- 1468, पीएलएफआइ- 360, टीपीसी- 290, जेजेएमपी- 145, जेपीसी- 70, एसजेएमएम- 40, न्यू एसपीएम- 35

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