
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है. उनका नारा तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा. आज भी देशवासियों के भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना पैदा करता है. नेताजी ने भारत की आजादी के लिए न सिर्फ देश के अंदर बल्कि दूसरों मुल्कों में जाकर भी संघर्ष किया.2021 से उनकी जयंती 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
एक आध्यात्मिक देशभक्त थे सुभाष चंद्र बोस
देशभक्तों की बात करें तो बोस स्वयं एक आध्यात्मिक देशभक्त थे. नेताजी का मानस स्वामी विवेकानंद और श्री रामकृष्ण परमहंस से काफी प्रभावित था. वह 15 वर्ष के थे जब उन्हें पहली बार स्वामी विवेकानंद के कार्यों का पता चला, जिसके बाद आध्यात्मिकता के प्रति उनका शाश्वत झुकाव प्रकट हुआ और उनके भीतर एक क्रांति कई गुना बढ़ गई. उनका मानना था कि दोनों आध्यात्मिक गुरु एक अदृश्य व्यक्तित्व के दो पहलू हैं.
सुभाष चंद्र बोस को किसने दी ‘नेताजी’ की उपाधि
इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि जर्मन के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने ही सुभाष चंद्र बोस को सबसेपहली बार ‘नेताजी’ कहकर बुलाया था. नेताजी के साथ ही सुषाभ चंद्र बोस को देश नायक भी कहा जाता है. कहा जात हैकि देश नायक की उपाधि सुभाष चंद्र बोस को रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिली थी.
सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजादी के लिए संघर्ष में एक महत्वपूर्ण विकास आजाद हिंद फौज का गठन और कार्यकलाप था, जिसे भारतीय राष्ट्रीय सेना या आईएनए के रूप में भी जाना जाता है. भारतीय क्रांतिकारी राश बिहारी बोस जो भारत से भाग कर कई वर्षों तक जापान में रहे, उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में रहनेवाले भारतीयों के समर्थन के साथ भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की थी.
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु है आज तक रहस्य
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की बात करें तो यह आज तक रहस्य बना है. क्योंकि आज तक उनकी मृत्यु से पर्दा नहीं उठ सका. बता दें कि 1945 में जापान जाते समय सुभाष चंद्र बोस का विमान ताईवान में क्रेश हो गया. हालांकि उनका शव नहीं मिला था.
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